प्रज्ज्वलित हैं वक़्त से गिरते पलों की कुछ सुर्ख परछाइयाँ जिनके आभास को अपनी मुट्ठी में बंद कर लेने कि एक अंतहीन तड़प, दृश्य को अदृश्य में परिणत करती हुई इस ठहरे बहाव की एक निरी सच्चाई, मेरे मूक होते हुए शब्दों में कुछ कहती हुई चुप हो जाती है | मैं अपने रेखाचित्रों की लकीरों में, रंग भरी तूलिका से अपने कैनवास के स्पर्श में, पंक्तियों में बिखरते शब्दों में और इस तरह कई बार अपनी लेखनी और कागज़ के बीच की छटपटाहट में, मानव चेतना के छलावे को अक्सर खोजती हूँ|
Saturday, July 10, 2021
Sunday, June 6, 2021
Friday, June 4, 2021
Saturday, May 29, 2021
कविता पाठ - मीना चोपड़ा भारतीय मिनस्ट्री ऑफ़ कल्चर 'Ministry Of Culture India'
मीना चोपड़ा (लेखक, कलाकार ):
मीना चोपड़ा एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लेखन और कलाकारिता के लिए सम्मानित एवं पुरस्कृत,लेखक,कवि और दृश्य कलाकार हैं,जिनके पास शब्द,रंग और रूप से समृद्ध एक अपरिहार्य और असीम काल्पनिक संसार है,जो उनके लेखन एवं चित्रकला में जीवंत होकर उभरता है । उत्तर भारत के नैनताल शहर में जन्मी और पली-बढ़ी मीना,अब कनाडा के Toronto शहर में निवासित हैं।
उनके तीन काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं|इसके अतिरिक्त उन्होंने कनाडा में बसे हिंदी और उर्दू लेखकों के एक पद्य संग्रह का सह-सम्पादन भी किया है। वह अपनी मूल भाषा हिंदी और अंग्रेजी दोनों में कविता और लेख लिखती है। उनकी कविताएं साहित्यिक पत्र -पत्रिकाओं में छपती रही हैं जिसमे सरिता,गगनांचल,हिंदी टाइम्स ,हिंदी चेतना,अनुभूति,शब्दांकन इत्यादि और भी कई नाम शामिल हैं। उनकी कवताएँ जर्मन और उर्दू में भी अनुदित है| वह अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए कई सम्मान प्राप्त कर चुकी हैं। हाल ही में उन्हें 'नेशनल एथेनिक प्रेस एंड मीडिया काउंसिल ऑफ कनाडा' द्वारा साहित्य (हिंदी व अंग्रेजी दोनों)और कला में विशिष्ट कार्य के लिए सम्मानित किया गया है। उन्हें 2017 में कनाडा के 150 वर्षों के जश्न में 'विजुअल आर्ट्स मिसिसॉगा' से उनकी पेंटिंग के लिए प्रथम पुरस्कार मिला। वह कनाडा के मार्टी अवार्ड्स 2019 के लिए फाइनलिस्ट रही हैं। इसके अतिरिक्त हिंदी लेखन के लिए इन्हे हिंदी की अनेक प्रमुख संस्थाओं द्वारा इन्हे सम्मानित किया जा चूका हैं जिसमें 'विश्व हिंदी संस्थान' अखिल विश्व हिंदी समिति, ग्लोबल हिंदी शोध संस्थान, गुरुग्राम विश्व विद्यालय इत्यादि कई नाम शामिल हैं| विश्व हिंदी पत्रकार एवं साहित्य समिति द्वारा इन्हें " महादेवी वर्मा विश्व हिंदी सम्मान" से सम्मानित किया गया है।
ये कनाडा में स्थित कई कला, सांस्कृतिक एवं हिंदी भाषा के प्रचार की संस्थओं के निदेशक मंडलों पर महत्वपूर्ण पद संभालती रही हैं। चित्रकला में भी इन्हे कई पुरस्कार मिल चुके है| वह कनाडा में स्टारबज नमक साप्ताहिक पत्रिका की प्रकाशक और शहनाई नामक रेडियो प्रोग्राम की रेडियो होस्ट भी रह चुकी हैं,साथ ही'लरना'नामक एजुकेशन सेंटर की निदेशक और संचालक भी रही हैं|आजकल वह कविता लेखन और चित्रकला की कार्यशालाएं देने में व्यस्त हैं,साथ ही वह नियमित रूप से 'स्पेशल नीड'वद्यार्थियों को कला शिक्षा देने में भी कार्यरत हैं|वह अपना अगला हिंदी कविता संकलन तैयार करने में भी कार्यरत हैं जो इस साल के मद्य तक तैयार होगा| उनका मानना है कि 'कला का साझा मंच' विभिन्न समुदायों और उनकी विभिन्नताओं को क़रीब लाकर समझने का सबसे अच्छा तरीका है और वह ऐसे कई बेहतरीन और सफल आयोजन कर चुकी हैं। वेबसाइट : www.meenachopra-artist.com कविताएँ: http://prajwalitkaun.blogspot.ca अ... की कविताएँ :http://ignitedlines.blogspot.ca/ Twitter: @meenachopraTwitter: @meenachopra Facebook: @meena.chopra.art , Instagram: @meena_artist_authorसमालोचनाएं
जीवन की प्रत्यक्ष,अप्रत्यक्ष,निजी-
— @काव्य_रस (@Kavya_Ras) May 29, 2021
प्रासंगिक अनुभूतियों को चित्रों में
जब ढाल दिया जाय कि वह कविता
लगने लगे,शब्द जब काव्य के रूप में
ढलें तो चित्रवीथियों सदृश हो जायें-
ऐसे मणिकांचन संयोग से रूबरू कराती@meenachopra जी की इन कृतियों
से होकर गुजरना सुखद कलात्मक,
साहित्यिक अनुभव है https://t.co/ROZlCbth27
Saturday, January 23, 2021
Wednesday, December 25, 2019
सर्द सन्नाटा
Saturday, August 10, 2019
पूरब की हूँ - श्यामल सी
ढलते हुए दिन के चेहरे में
मुट्ठी भर उजाला ढूँढ़्ती हूँ।
सूरज को अपने
गर्दिशों में ज़मीं की ढूढ़्ती हूँ।
बहकती हवाओं की
फ़िज़ाओं के सुरीले तरन्नुम में
गुनगुनाहटें ज़िन्दगी की ढूढ़्ती हूं
पूरब की हूँ - श्यामल सी
सूरज को अपने
गर्दिशों में ज़मीं की ढूढ़्ती हूँ।
उठती निगाहों में
भर के कायनात का काजल
दूर कहीं छोर पर उफ़क के
टिमटिमाता वो सितारा ढूढ़्ती हूं
पूरब की हूँ - श्यामल सी
सूरज को अपने
गर्दिशों में ज़मीं की ढूढ़्ती हूँ।
शोख फूलों को
घूंट मस्ती के पिलाकर
चहकती धूप को आंगन में बिछाकर
ओस की बूंद में अम्बर को ढूँढ़्ती हूँ
पूरब की हूँ - श्यामल सी
सूरज को अपने
गर्दिशों में ज़मीं की ढूढ़्ती हूँ।"
Friday, January 4, 2019
धर्म संकट
और टूटते हुए ईश्वर
से गिरी धूल और मिटटी में
सने मेरे ये शब्द मूक हो गए हैं
इन मंदिरों, मस्जिदों और ईसा-घरों के
आलीशान गुम्बदों से गिर-गिर के
मेरी आवाज़ चूर हो गई है
इस झूठी सच्चाई की दलदल में फसी
ये ज़मीन की कोख में खो हैं
रौंदी हुई सिमटी हुई
मेरी ये ज़मीन आज चुप है
मुझे पनाह देती है
मूक है
कुछ नहीं कहती
लेकिन कब तक?
-मीना
Friday, April 6, 2018
कौन थी वह
जो एक बिन्दु-सी
सो रही थी पल-पल --
मीठी-सी नींद को
आँखों में भरकर
कोख की आँच में
माँ की सर रखकर।
चाहती थी वह
इस नये संसार में
खुलकर भ्रमण करना
एक नये वजूद को
पहन कर तन पर
ज़िन्दगी की चोखट पर
पहला कदम रखना
और फिर
इन जुड़ते और टूटते पलों
से बनी रिश्तों की सीढ़ी पर
लम्हा-लम्हा चढ़ना।
क्या था यही
जन्म को अपने
सार्थक करना?
कौन थी वह
जो एक बिन्दु-सी
सो रही थी पल-पल ......
Sunday, November 27, 2016
Friday, December 25, 2015
REMEMBRING "SADHANA" :: Mila Hai Kisi Ka Jhumka (गीत व्याख्या) - Parakh
गीत की व्याख्या :
Milaa Hai Kisi Kaa Jhumakaa Thande-Thande Hare-Hare Nim Tale
O Sachche Moti Vaalaa Jhumakaa Thade-Thade Hare-Hare Nim Tale
Suno Kyaa Kahataa Hai Jhumakaa Thade-Thade Hare-Hare Nim Tale
Milaa Hai Kisi Kaa
Pyar Kaa Hidolaa Yahaan Jhul Ga_E Nainaa
Sapane Jo Dekhe Mujhe Bhul Ga_E Nainaa -2
Haay Re Bechaaraa Jhumakaa
Thade-Thade Hare-Hare
Jivan Bhar Kaa Naataa Paradesiyaa Se Jodaa
Aap Gayi Piyaa Sag Mujhe Yahaan Chhodaa -2
Padaa Hai Akelaa Jhumakaa
Thade-Thade Hare-Hare
Haay Re Yeh Prit Ki Hai Rit Jane Kaisi
Tan-Man Haar Jane Mein Hai Jit Jane Kaisi -2
Jane Ne Bechaaraa Jhumakaa
Thade-Thade Hare-Hare
Monday, September 14, 2015
उन्मुक्त
ये चल पड़े हवाओं पर
अपनी कहानियाँ लिखने।
इन्हें सहलाती रही।
कलम मन ही मन
मुस्कुराती रही
गीत गाती रही।
Friday, August 28, 2015
Friday, July 18, 2014
तीर्थ
वक्त का एक मोहरा हो गया।
और फिर
फ़िज़ाओं की चादर पर बैठा
हवाओं को चूमता
आसमानों की सरहदों में कहीं
Thursday, May 15, 2014
Thursday, May 1, 2014
Sunday, April 20, 2014
अवशेष
टूटती रस्सियों में बंध चुका था
तुम्हारे कदमों में झुकी हुई
तुम्हीं में प्रवाहित
तुम्हीं में मिट रही थी
तुम्हीं में बन रही थी|
तुम्हीं में जल रही थी
तुम्हीं में बुझ रही थी!
कई कहानियाँ तैर रही थीं जिनमें
उन्ही मे हमारी कहानी भी
अपना किनारा ढूँढती थी!
दृष्टि और दृश्य से ओझल
भविष्य और भूत की धुन्ध में लिपटा मद्धम सा दिखाई देता था।
शायद एक स्वप्न लोक !
हम अपनी तकदीरों में जग गए।