प्रज्ज्वलित हैं वक़्त से गिरते पलों की कुछ सुर्ख परछाइयाँ जिनके आभास को अपनी मुट्ठी में बंद कर लेने कि एक अंतहीन तड़प, दृश्य को अदृश्य में परिणत करती हुई इस ठहरे बहाव की एक निरी सच्चाई, मेरे मूक होते हुए शब्दों में कुछ कहती हुई चुप हो जाती है | मैं अपने रेखाचित्रों की लकीरों में, रंग भरी तूलिका से अपने कैनवास के स्पर्श में, पंक्तियों में बिखरते शब्दों में और इस तरह कई बार अपनी लेखनी और कागज़ के बीच की छटपटाहट में, मानव चेतना के छलावे को अक्सर खोजती हूँ|
Saturday, July 10, 2021
Meena Chopra - Artist & Poet at Mosaic - The South Asian Festival of Mis...
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