प्रेरणा

Nainital
Nainital (Photo credit: Ashok666)
मेरा जन्म स्थल 'नैनीताल' उत्तरी भारत में स्थित एक सुंदर एवं सौम्य पर्वतीय नगर है और यह सदा ही मेरी आतंरिक प्रेरणा का स्रोत रहा है | विस्मित हूँ की मेरी कर्म भूमि कैनाडा का प्राकृतिक सौंदर्य मुझे मेरे बचपन से जोड़ता हुआ सदैव ही मुझे उसकी याद दिलाता रहता है |
विशेषतः यहाँ का असीमित आकाश और उसके अंत में डूबता सूरज, क्षितिज पर बहते रंगों के साथ दूर - दूर निगाहों के छोर तक फैली धरती, यह सब मुझ में आकर जैसे थम सा जाता है | वहां अपने बचपन से जुड़े नैनीताल की पहाड़ी के पीछे डूबते सूरज को मैं जब भी यहाँ कैनाडा में अपनी खिड़की के सामने फैले क्षितिज पर देखती हूँ तो पूर्व का वह सूरज पश्चिम के सूरज में विलीन होता चला जाता है | मेरा कल मेरे आज में ढल जाता है | मुझ में एक नया सूरज जन्म ले लेता है और कविताओं में बहने लगता है |   
अंधेरों और उजालों की गोद में पड़ा एक रिसता हुआ रिश्ता, पुरूष और प्रकृति के बीच  की दूरियों को नापता हुआ, कुछ जलती और बुझती कहानियो में अपनी प्रतिबिम्बित पहचान को खोजता अक्सर खो जाता है |
— और इन उड़ते हुए पलों के आभास को अपनी मुट्ठी में बंद कर लेने कि एक अंतहीन तड़प, दृश्य को अदृश्य में परिणत करती हुई इस ठहरे बहाव की एक निरी सच्चाई, मेरे मूक होते हुए शब्दों में कुछ कहती हुई चुप हो जाती है |
मैं अपने रेखाचित्रों की लकीरों में, रंग भरी तूलिका से अपने कैनवास के स्पर्श में, पंक्तियों में बिखरते शब्दों में और इस तरह कई बार अपनी लेखनी और कागज़ के बीच की छटपटाहट में, मानव चेतना के छलावे को अक्सर खोजती हूँ |


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झील से झांकते आसमान की गहराई में
बादलों को चूमती पहाड़ों की परछाईयां
और घने पेड़ों के बीच फड़फड़ाते अतीत के चेहरे
झरनो के झरझराते मुख से झरते मधुर गीत संगीत
हवाओं पर बिखरी गेंदे के फूलों की सुनहरी खुशबू
दूर कहीं सजदों में झुकी घंटियों की गूंज
बांसुरी की धुन में लिपट कर चोटियों से
धीमे—धीमे उतरती मीठी धूप।

पानी में डुबकियां लगाती कुछ मचलती किरणे
और उन पर छ्पक—छपक चप्पूओं से सांसे लेती
ज़िन्दगी की चलती नौका
रात की झिलमिलाहटों में तैरती चुप्पियों की लहरें
किनारों से टकराकर लौटती जुगनुओं की वो चमक।

उम्मीदों की ठण्डी सड़क पर हवाओं से बातें करती
किसी राह्गीर के सपनों की तेज़ दौड़ती टापें
पगडंडियों को समेटे कदमो में अपने
पहूंची हैं वहां तक—जहां मंज़िलों के मुकाम
अक्सों में थम गये हैं
झील की गहराई में उतरकर
नींद को थपथपाते हुए
उठती सुबह की अंगड़ाई में रम गये हैं।

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