सभी कविताएं बेहद प्रशंसनीय और दिल को छू जाने वाली हैं। कुछ रचनाकार ऐसा लिख जाते हैं जिन्हें दूर बैठ पढ़ने पर भी साथ पी गयी चाय-कॉफ़ी का ज़ायका सहज ही मिल जाता है, आपकी लेखनी पाठक के साथ कुछ ऐसा ही ताल-मेल बैठाती है!
-डॉ. प्रेमलता चसवाल 'प्रेमपुष्प' एवं पुष्पराज चसवाल
(सम्पादक द्वय: अनहद कृति)
www.anhadkriti.com
मीना जी, 'प्रज्ज्वलित' में प्रस्तुत छोटी कविताओं में अपनी काव्य-सामग्री पर जैसा कल्पनापूर्ण नियंत्रण आप रख सकी हैं वह आपकी रचनात्मक सामर्थ्य के एक और पक्ष से परिचित कराता है । ब्लॉग का 'डिजाइन' भी अच्छा लगा |
Mukesh Mishra
"... सियाही में
//कभी यह जिस्म के कोनो में
ठहर भी जाता है
कभी गीत बन कर
होठों पर रुक जाता है//
वाह-वाह बहुत ही सुंदर ! कविता का जनून बहुत पुराना है इस लिए बिना आपकी इजाज़त एक इमानदाराना सलाह देने की हिमाकत कर रहा हूँ !
//होठों पर रुक जाता है// को अगर //होठों पे रुक भी जाता है// कर लिया जाये तो //ठहर भी जाता है// वाली पंक्ति के साथ इसका तारतम्य भी बनेगा और शब्द "भी" का यहाँ आ जाना आपकी कविता की सुन्दरता में थोडा इजाफा ही करेगा ! "पर" कि जगह "पे" से कविता की रवानी झरने की तरह निर्बाध भी रहेगी ! हालाकि मैं आपकी मित्र सूची में नहीं लेकिन फिर भी आपकी कविता की तारीफ किये बिना और अपनी राये व्यक्त किये बिना रह न सका !
Jagdish Tapish माननीया
मीना जी ---योग्य अभिवादन ---
जिस्म के कोनों से सरसराता हुआ निकल जाता है ---सन्नाटा
रंगीन अंधेरों में घुलकर सर्द रातों में गूंजता है अक्सर ----सर्द सन्नाटा
मेरे करीब आ जाता है मेरा --हबीब --सन्नाटा
सुबह के वक़्त आँखें बंद कर के देखती हूँ जब ----
प्रकृति के साथ जीवन से जुडी रचना -पल पल का अहसास
दिलाती शब्द संरचना निश्चित ही बहुत अच्छी है -ये सन्नाटा
वो भी सुबह के सूरज की पहली किरण के साथ अपने आप में
अकेलेपन और रिक्तता का बोध कराता है ऐसा लगता है जैसे
सब कुछ होते हुए भी बहुत कुछ खोया हो किसी ने अपने जीवन में
रचना जीवन की कसौटी पर एकदम खरी-वास्तविकता लिए हुए है
उत्तम रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें
ताजगी भरी बयार का एक झोंका मिला आपकी कविता से !
आपकी काव्य भाषा भी अनोखी है, वक्त का मोहरा, फ़िज़ाओं की चादर, आसमान की सरहदें, आसक्ति से अनासक्ति तक की दौड़,
भोग से अभोग तक की चाह,... गहरी व्यंजना लिए हैं.
“مینا کے رنگ کینو س پر بکھر تے ہیں تو شا عری کر تے ہیں اور جب وہ شا عری کر تی ہے تو دھنک کے رنگ اس کی شا عری کے کینوس پر بکھر جا تے ہیں- مینا کی رو ح فطر ت کے حسن سے جڑی ہو ئ ہے اور جب اسکا حسا س دل اور سو چتی آ نکھیں ان منا ظر سے گزر تے ہیں تو عشق کے آ وے پر ا حسا س کی مور تیا ں ڈ ھا لتے ہا تھ جلتے ہو ئے چر ا غو ں جیسی نظمیں قطا ر در قطا ر سجا تے چلے جا تے ہیں"
- Gautam Siddharth— The Pioneer (Book reviews), Delhi, (India) 28.9.1996
"As well known in art circles for her painting as her poetry – she often combines the two – Chopra’s work focuses on the natural and abstractly emotional, showcasing a humanistic philosophy she also applies to her personal life".
-The Mississauga News, J.P. Antonacci|Mar 01, 2010
"Chopra shines in art and poetry - Coming to Canada from her native India, artist and poet Meena Chopra’s search for meaning has taken her far beyond home and finding her new identity in Canada."
-The Mississauga News|Feb 28, 2010
-Toronto Star, Jim Wilkes Aug 09 2010
"Each one of the forty expressions picturise a lived reality, an experienced emotion, a missed heartbeat without being sentimental about it. Nothing comes as after thought or an overstatement. She is precise and matter of fact even in articulations …"..
- Suresh Kohli (on "Ignited Lines")The Hindu, Delhi, 1.12 1996
-Adrian Khare Blitz, Bombay, India 13.3 1993
- Dr. Shalini Sikka, The Weekend Observer (Review) Delhi(India) January 4 1997
- Dr. Shalini Sikka The Quest, Ranchi (India) 1996)
- Dr. Shalini Sikka The Journal Of The Poetry Society (India), 1996
- M. Fakhruddin, Poets International, Banglore, (India) December 1996
- Critic First City, Delhi, (India) August 1999
"Accompanying her paintings are her verses, and the two compliment each other. In Fact, they often seem to flow from and into each other, making one wonder which came first, the word or the image. The heightened passionate quality of her verses imbues the images with a strong emotional power.”
-Manisha Vardhan The Pioneer, New Delhi(India) August 11 1999
- Critic First City Magazine, January 1997
- Critic Financial Express July 21 1996
- Akshaya Mukul The Pioneer, Delhi, India, June 13, 1996
- Venkastesh Raghavan Free Press Journal , Bombay, India 11th March 1993
- A.H. Naqawi Day After (Book Review), Delhi, (India) 30th Sept.-14thOct. 1996
- S. Rajoo The Times of India, Delhi, 23. 7. 1996
- Deshbandhu Singh Rashtriya Sahara, Delhi, (India) August 1996
जीवन की प्रत्यक्ष,अप्रत्यक्ष,निजी-
— @काव्य_रस (@Kavya_Ras) May 29, 2021
प्रासंगिक अनुभूतियों को चित्रों में
जब ढाल दिया जाय कि वह कविता
लगने लगे,शब्द जब काव्य के रूप में
ढलें तो चित्रवीथियों सदृश हो जायें-
ऐसे मणिकांचन संयोग से रूबरू कराती@meenachopra जी की इन कृतियों
से होकर गुजरना सुखद कलात्मक,
साहित्यिक अनुभव है https://t.co/ROZlCbth27
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