वक्त खण्डित था, युगों में !
टूटती रस्सियों में बंध चुका था
अँधेरे इन रस्सियों को निगल रहे थे।टूटती रस्सियों में बंध चुका था
तब !
जीवन तरंग में अविरत मैं
तुम्हारे कदमों में झुकी हुई
तुम्हीं में प्रवाहित
तुम्हीं में मिट रही थी
तुम्हीं में बन रही थी|
तुम्हारे कदमों में झुकी हुई
तुम्हीं में प्रवाहित
तुम्हीं में मिट रही थी
तुम्हीं में बन रही थी|
तुम्हीं से अस्त और उदित मैं
तुम्हीं में जल रही थी
तुम्हीं में बुझ रही थी!
तुम्हीं में जल रही थी
तुम्हीं में बुझ रही थी!
कुछ खाँचे बच गए थे
कई कहानियाँ तैर रही थीं जिनमें
उन्ही मे हमारी कहानी भी
अपना किनारा ढूँढती थी!
कई कहानियाँ तैर रही थीं जिनमें
उन्ही मे हमारी कहानी भी
अपना किनारा ढूँढती थी!
एक अंत ! जिसका आरम्भ,
दृष्टि और दृश्य से ओझल
भविष्य और भूत की धुन्ध में लिपटा मद्धम सा दिखाई देता था।
दृष्टि और दृश्य से ओझल
भविष्य और भूत की धुन्ध में लिपटा मद्धम सा दिखाई देता था।
अविरल !
शायद एक स्वप्न लोक !
शायद एक स्वप्न लोक !
और तब आँख खुल गई
हम अपनी तकदीरों में जग गए।
हम अपनी तकदीरों में जग गए।
टुकड़े - टुकड़े ज़मीं पर बिखर गए।
-मीना
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