Friday, February 28, 2014

ओस की एक बूँद

Pastel by Meena
ओस में डूबता अंतरिक्ष
विदा ले रहा है
अँधेरों पर गिरती तुषार
और कोहरों की नमी से।


और यह बूँद न जाने
कब तक जियेगी
इस लटकती टहनी से
जुड़े पत्ते के आलिंगन में।

धूल में जा गिरी तो फिर
मिट के जाएगी कहाँ?

ओस की एक बूँद
बस चुकी है कब की

मेरे व्याकुल मन में।

-©मीना चोपड़ा 

Thursday, February 27, 2014

बहती खलाओं का वो आवारा टुकड़ा

कभी देखा था इसे 
Golden Valley, AZ sunset funnel cloudपलक झपकती रौशानी के बीच 
कहीं छुपछूपाते हुए,   
जहां क्षितिज के सीने में उलझी मृगत्रिष्णा 
ढलती शाम के क़दमों में दम तोड़ देती है। 

और कभी 
हवा के झोंकों में लिपटे 
पत्तों की सरसराहट में 
इसकी मध्धम सी आवाज़ भी सुनी थी मैंने 

दुशाला

Sunrise over the south beach of Jamaica.
 Photo credit: Wikipedia
अंधेरों का दुशाला
मिट्टी को मेरी ओढ़े
अपनी सिलवटों के बीच
खुद ही सिमटता चला गया

और कुछ झलकती
परछाइयों की सरसराहट,
सरकती हुई
इन सिलवटों में
गुम होती चली गयी|

प्रज्ज्वलित कौन?

Pastel on paper by Meena
देह मेरी
कोरी मिट्टी!
धरा से उभरी,
तुम्हारे हाथों में
तुम्हारे हाथों तक
जीवन धारा से
सिंचित हुई यह मिट्टी।