Friday, January 4, 2019

धर्म संकट

कई भागों में बँटे हुए
और टूटते हुए ईश्वर
से गिरी धूल और मिटटी में
सने मेरे ये शब्द मूक हो गए हैं
इन मंदिरों, मस्जिदों और ईसा-घरों के
आलीशान गुम्बदों से गिर-गिर के 

मेरी आवाज़ चूर हो गई  है
इस झूठी सच्चाई की दलदल में फसी
ये ज़मीन की कोख में खो  हैं


रौंदी हुई सिमटी हुई
मेरी ये ज़मीन आज  चुप है
मुझे पनाह देती है
मूक है 
कुछ नहीं कहती

लेकिन कब तक?

-मीना

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