मीना चोपड़ा द्वारा निर्मित तैलचित्र |
तारों से गिरती धूल में
चांदनी रात का बुरादा शामिल कर
एक चमकीला अबीर
बना डाला मैने
उजला किया इसको मलकर
रात का चौड़ा माथा।
सपनो के बीच की यह चमचमाहट
सुबह की धुन में
किसी चरवाहे की बांसुरी की गुनगुनाहट बन
गुंजती है कहीं दूर पहाड़ी पर ।
ऐसा लगता है जैसे किसीने
भोर के नशीले होठों पर
रात की आंखों से झरते झरनो मे धुला चांद
लाकर रख दिया हो
वर्क से ढकी बर्फ़ी का डला हो।
और
चांदनी कुछ बेबस सी
धुले चांद को आगोश मे अपने भरकर
एक नई धुन और एक नई बांसुरी को ढूढ़ती
उसी पहाड़ी के पीछे छुपी
दोपहर के सुरों की आहट में
आती अमावस की बाट जोहती हुई
खो चुकी हो|
-© मीना चोपड़ा
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