Pastel on paper by Meena Chopra |
वक्त की सियाही में
कलम को अपनी डुबोकर
आकाश को रोशन कर दिया था मैंने
और यह लहराते,
घूमते -फिरते, बहकते
बेफ़िक्र से आसमानी पन्ने
न जाने कब चुपचाप
आ के छुप गए
कलम के सीने में।
नज़्में उतरीं तो उतरती ही गईं मुझमें
आयते उभरीं
तो उभरती ही गईं तुम तक।
आँखें उट्ठीं तो देखा
क़ायनात जल रही थी।
जब ये झुकीं
तो तुम थे और कुछ भी नहीं।
-©मीना चोपड़ा
No comments:
Post a Comment