Saturday, March 15, 2014

वो हल्का सा गुलाल-

''होली आई रे आई होली आई रे '' (चर्चा मंच-1554)

आँखों की जलती बुझती रौशानी के बीच कहीं 
पेस्टल चित्र - मीना द्वारा रचित  
वो हल्का सा गुलाल-
क्षितिज के मद्धम से अंधरों को अपने में समेटे 
चाँद की पेशानी पर 
टिमटिमाता है अबीर बन 
हर पूनम को
वो हल्का सा गुलाल- 

आस लगाये बैठी हूँ
उस होली की सुबह का 
जब ये चाँद पूनम से उतर कर 
अमावास के गुलाल में सितारे भरकर
मेरे मन के अंधेरों की पेशानी पर 
इन्द्रधनुश सा रौशन होगा। 

मेरा जीवन
अमावास से बने उजालों के 
एक अथाह सागर में भीगा होगा। 

-मीना चोपड़ा 

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