प्रज्ज्वलित हैं वक़्त से गिरते पलों की कुछ सुर्ख परछाइयाँ जिनके आभास को अपनी मुट्ठी में बंद कर लेने कि एक अंतहीन तड़प, दृश्य को अदृश्य में परिणत करती हुई इस ठहरे बहाव की एक निरी सच्चाई, मेरे मूक होते हुए शब्दों में कुछ कहती हुई चुप हो जाती है | मैं अपने रेखाचित्रों की लकीरों में, रंग भरी तूलिका से अपने कैनवास के स्पर्श में, पंक्तियों में बिखरते शब्दों में और इस तरह कई बार अपनी लेखनी और कागज़ के बीच की छटपटाहट में, मानव चेतना के छलावे को अक्सर खोजती हूँ|
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Monday, March 10, 2014
Sunday, March 2, 2014
शून्य की परछाईं
(Photo credit: Wikipedia) |
सितारों में लीन हो चुके हैं स्याह सन्नाटे
ख़लाओं को हाथों में थामें
रोशनी को अपनी
ढलती चाँदनी की चादर पर बिखराता
Friday, February 28, 2014
औरत
ये वह शक्ति है जिसकी कोख में जीवन पनपता है
वो ताकत है
जो सितारों भरी क़ायनात को जन्म देती है,
जीवन को जगमगाहट और नज्जारों को इल्म देती है,
धरा पे उगते फूलों, पौधों और पेड़ों को सींच देती है
कहीं शबरी, कहीं मीरा, तो कहीं रानी झाँसी का रूप लेती है
ये औरत है जो रण में जाते वीरों को विजय तिलक देती है
ये औरतहै, निर्भय है,
निर्भयता को जन्म देती है।
-©मीना चोपड़ा
मीना द्वारा निमित पेस्टल चित्र |
जो सितारों भरी क़ायनात को जन्म देती है,
जीवन को जगमगाहट और नज्जारों को इल्म देती है,
धरा पे उगते फूलों, पौधों और पेड़ों को सींच देती है
कहीं शबरी, कहीं मीरा, तो कहीं रानी झाँसी का रूप लेती है
ये औरत है जो रण में जाते वीरों को विजय तिलक देती है
ये औरतहै, निर्भय है,
निर्भयता को जन्म देती है।
-©मीना चोपड़ा
Thursday, February 27, 2014
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